सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी : कारण और प्रक्रिया को समझना
सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी
सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी वह स्थिति है जब कोई दंपति पहले बच्चे के जन्म के बाद गर्भधारण करने या गर्भावस्था को सफलतापूर्वक पूरा करने में असमर्थ होता है। यह समस्या प्राथमिक बांझपन जितनी ही आम है, लेकिन अक्सर कम ध्यान दिया जाता है। इसके कारणों और शारीरिक प्रक्रियाओं को समझने से निदान और उपचार में मदद मिल सकती है।
सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी के कारण
1. महिलाओं से जुड़ी समस्याएं
उम्र का प्रभाव:
35 वर्ष के बाद अंडाणुओं की गुणवत्ता और संख्या कम हो जाती है, जिससे गर्भधारण की संभावना घटती है।
अंडाशय की उम्र बढ़ना
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, अंडाणुओं की गुणवत्ता और संख्या में गिरावट होती है।
अंडाशय में अंडाणु के बनने की प्रक्रिया (फॉलिकुलर एट्रेसिया) धीमी हो जाती है।
संरचनात्मक समस्याएं (गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब की समस्याएं)
गर्भाशय में फाइब्रॉइड: ये गर्भाशय में रक्त प्रवाह को बाधित कर सकते हैं और भ्रूण के ठीक से स्थापित होने में बाधा बन सकते हैं। यह गर्भाशय में भ्रूण के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में बाधा डाल सकते हैं।
फैलोपियन ट्यूब की रुकावट: पिछले गर्भावस्था के दौरान संक्रमण या सर्जरी से ट्यूब क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। फैलोपियन ट्यूब में सूजन या रुकावट के कारण शुक्राणु और अंडाणु
हार्मोनल असंतुलन:
पीसीओएस (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) या थायरॉयड जैसी समस्याओं के कारण ओवुलेशन में रुकावट आ सकती है।
पीसीओएस और थायरॉयड समस्याएं हार्मोनल संतुलन बिगाड़ देती हैं, जिससे नियमित ओवुलेशन में बाधा आती है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस (जो पीसीओएस में आम है) अंडाणु के विकास और गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
एंडोमेट्रियोसिस:
यह स्थिति समय के साथ गंभीर हो सकती है, जिससे प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है।
संक्रमण:
यौन संचारित रोग (STI) या गर्भावस्था के बाद संक्रमण पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (PID) का कारण बन सकते हैं, जिससे गर्भधारण कठिन हो जाता है।
2. पुरुषों से जुड़ी समस्याएं
शुक्राणु की गुणवत्ता में कमी:
उम्र, पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों का प्रभाव, या जीवनशैली से शुक्राणुओं की गति और संख्या कम हो सकती है।
शुक्राणु की डीएनए गुणवत्ता में कमी या ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण अंडाणु निषेचन में असफल हो सकता है।
संक्रमण या चोट:
प्रजनन अंगों में चोट या संक्रमण से शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।
हार्मोनल समस्याएं:
टेस्टोस्टेरोन की कमी या अन्य अंतःस्रावी समस्याएं शुक्राणु उत्पादन को बाधित कर सकती हैं।
3. संयुक्त कारण
दंपति दोनों में हल्की प्रजनन समस्याएं हो सकती हैं, जो मिलकर गर्भधारण में रुकावट डालती हैं।
4. प्रतिरक्षा तंत्र की भूमिका
कुछ मामलों में, महिला का प्रतिरक्षा तंत्र शुक्राणु या भ्रूण के खिलाफ प्रतिक्रिया कर सकता है।
5. अस्पष्ट कारण
कई बार गहन जांच के बाद भी कोई स्पष्ट कारण नहीं मिल पाता।
सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी के जोखिम कारक
उम्र: बढ़ती उम्र के साथ प्रजनन क्षमता कम होती है।
जीवनशैली: धूम्रपान, शराब, मोटापा और तनाव।
चिकित्सीय इतिहास: पिछली गर्भावस्था या सर्जरी के दौरान हुए संक्रमण।
पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थ: रसायनों और भारी धातुओं का संपर्क।
निदान और उपचार
1. महिलाओं के लिए जांच
हार्मोनल परीक्षण: FSH, AMH, LH, और थायरॉयड जांच।
संरचनात्मक समस्याओं के लिए अल्ट्रासाउंड या हिस्टरोसैल्पिंगोग्राफी (HSG)।
एंडोमेट्रियल बायोप्सी।
2. पुरुषों के लिए जांच
शुक्राणु परीक्षण: संख्या, गति और संरचना की जांच।
हार्मोनल प्रोफाइलिंग।
जेनेटिक परीक्षण।
3. उपचार विकल्प
जीवनशैली में बदलाव: संतुलित आहार, व्यायाम, और तनाव प्रबंधन।
चिकित्सीय हस्तक्षेप:
हार्मोनल उपचार।
सर्जिकल प्रक्रियाएं।
असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART), जैसे IUI और IVF।
निष्कर्ष
सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी , भले ही चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन सही समय पर निदान और उपचार से इसका समाधान संभव है। इसके कारणों को समझना और जीवनशैली में बदलाव लाना, साथ ही चिकित्सीय सलाह लेना, सफल गर्भधारण की संभावनाओं को बढ़ा सकता है।
यदि आप सेकन्डेरी इंफर्टिलिटी का सामना कर रहे हैं, तो किसी विशेषज्ञ से परामर्श करें। समय पर उठाया गया कदम आपके माता-पिता बनने के सपने को साकार कर सकता है।