मोटापा और बांझपन

shradhaivf IVF & Maternity
Sep 10, 2024By shradhaivf IVF & Maternity

मोटापा और बांझपन 

आये जाने मुटापा कैसे बांझपन का कारण बन सकता है – गहराई से जाने। 

मोटापे और अधिक वजन की वैश्विक दर लगातार बढ़ रही है और महामारी के का रूप ले रहा है। 
कम शारीरिक गतिविधि, खाने मे फास्ट फूड का प्रयोग जैसे जीवन शैली में बदलाव के कारण में मोटापे की दर बढ़ी है। 

woman eating a fast food burger

बांझ महिलाओं में मोटापा आम है, और यह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि मोटापे और गर्भ धारण करने में विफलता के बीच एक संबंध है। 

मोटी महिलाओं को बाकी महिलाओं की तुलना में बांझपन का असर होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है। 

मोटापे से संबंधित बांझपन कई कारकों के कारण होता है, जिसमें अंडसे मे खराब अंडों का विकास, अंडा के विकास अवम गुणात्मक और मात्रा मे कमी , पुरूष शुक्राणु अवम मद के अंडों मिलने पर फर्टलिज़ैशन न हो पान  , अगर भ्रूण बन भी गया तो उसका विकास कम होना और भ्रूण का गर्भासए मे प्रत्यारोपण की संभावना काम होना शामिल हैं। 

अधिक वजन वाली महिलाओं को मासिक धर्म ठीक समय पर नहीं आता है , गर्भपात की संभावना ज्यादा होती है और तो और अंडे के न बनने की संभावना भी अधिक होती है। 

गर्भावस्था के दौरान मातृ और भ्रूण की बढ़ती समस्याओं के कारण मोटापे से ग्रस्त महिलाओं के स्वस्थ शिशु होने की संभावना कम होती है। 

मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में एस्ट्रोजेन जो की महिला हॉर्मोन है के संतुलन मे एंड्रोजन जो की पुरूष हॉर्मोलए है की मात्र ज्यादा पाये जाती है , जिसके वृद्धि से गोनाडोट्रोपिन की मात्र  मे कमी आती है । जिससे गर्भ ठहरने मे दिक्कत आती है। 

मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में इंसुलिन प्रतिरोध होता है जिसके कारण इंसुलिन हॉर्मोन कम काम करता है और हाइपरइन्सुलिनेमिया के परिणामस्वरूप हाइपरएंड्रोजेनिमिया होता है अर्थात पुरूष हॉर्मोन मे वृद्धि होने लगती है। । 

मोटापे से ग्रस्त महिलाओं मे चर्बी की मात्र ज्यादा होती है , चर्बी 2 तरह का केमिकल (एडिपोकिन साइटोकिन ) का उत्पादह करता है।  
पहला का नाम है लेपटीन , अंडरोगेन अर्थात पुरूष हॉर्मोन के ज्यादा होने पर लेपतीं ज्यादा बंता है , और लेपटीन हानिकारक होता है , यह यह यौन परिपक्वता मे कमी लता है और असामान्य कोशिका संचार का कारण बन सकता है। और यह यौन विकास विकारों, यौवन संबंधी बीमारियों और प्रजनन समस्याओं को प्रेरित करने के लिए जानी जाती है।

दूसरे का नाम आडेपोनेक्टिन है, जिसकी मात्र मे कमी आती है , पर ये तो लाभदायक होता है , ये लिवर मे छोनी का खपत बढ़ाता है और इंसुलिन से बेहतर काम करता है । इसके कमी से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 


आये जानते है मोटापे से ग्रसित एक और समस्या का बारे मे। 

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन बीमारी (पी.सी.ओ.डी.) और पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पी.सी.ओ.एस) क्या होता है। 

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन बीमारी  (पी.सी.ओ.डी.) एक चिकित्सा रोग है जिसमें अंडाशय अपरिपक्व या आंशिक रूप से विकसित अंडों का अधिक उत्पादन करते हैं। खराब जीवन शैली जैसे बाहर बाजार का खान पान , व्यायाम न करना , मोटापा, तनाव और हार्मोनल असंतुलन इस बीमारी के सामान्य कारण हैं। 

पॉलीसिस्टिक अंडाशय, सामान्य अंडाशय से बड़े होते हैं और उनमें फालिकल की संख्या दोगुनी होती है। 

पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) एक चिकित्सा विकार है जो मुख्य रूप से मासिक धर्म चक्र, प्रजनन क्षमता, हार्मोन के स्तर और शारीरिक स्वरूप को प्रभावित करता है। 

पी.सी.ओ.एस में हॉर्मोन की समस्याओं के कारण एंड्रोजन हॉर्मोन जो की पुरूष हॉर्मोन है का उत्पादन होता हैं, जिससे अंडों में सिस्ट बनने की संभावना बढ़ जाती है। 

पी.सी.ओ.एस. एक रोग है जो एंड्रोजन के उच्च स्तर के कारण होता है। इससे पहले, पीसीओएस को केवल एक हाइपरएंड्रोजेनिक स्थिति के रूप में जाना जाता था जो बांझपन का कारण बन सकती है। पीसीओएस मेटबालिक बीमारियों जैसे इंसुलिन प्रतिरोध , हाइपरइन्सुलिज्म, ग्लूकोज का काम खपत होना और मोटापे से संबंधित है। 

उच्च इंसुलिन के स्तर से उत्पन्न एंड्रोजन का ऊंचा स्तर ग्रैनुलोसा कोशिका की मृत्यु को बढ़ावा देता है, जो अंडासे मे अंडों की कमी हो जाती है।